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Coronavirus in Indore: इंदौर में कोरोना की चाल भांप नहीं पाया प्रशासन

Coronavirus in Indore: इंदौर में कोरोना की चाल भांप नहीं पाया प्रशासन

 Coronavirus in Indore: इंदौर में कोरोना की चाल भांप नहीं पाया प्रशासन

Coronavirus in Indore: इंदौर में कोरोना की चाल भांप नहीं पाया प्रशासन


Coronavirus in Indore। लगता है साल 2020 के मार्च-अप्रैल और साल 2021 के मार्च-अप्रैल में ज्यादा अंतर नहीं है। सरकार और प्रशासन ने उम्मीद की थी कि नए साल में संक्रमण कम हो चला है। बस इसके साथ ही हर स्तर पर लापरवाही और अनदेखी शुरू हो गई। लापरवाही आम जनता की तरफ से भी थी तो प्रशासन के स्तर पर भी हुई। जनता ने मास्क और शारीरिक दूरी हटाई तो प्रशासन ने कोरोना का सर्वे, सैंपलिंग, टेस्टिंग, सैनिटाइजेशन, बेड सब हटा लिए। शायद कोरोना वायरस का नया स्ट्रेन यही चाहता था। कोरोना से बचाव की ढाल हटते ही उसने दुगुनी ताकत से हमला कर दिया।

कोरोना की इस चाल को न जनता भांप पाई और न ही शासन-प्रशासन। नतीजा सामने है, अब संभलने का भी मौका नहीं मिल रहा है। एक साल की कोरोना महामारी को झेलने के बाद दूसरी लहर तक भी इंदौर की स्वास्थ्य सुविधाओं में खास इजाफा नहीं हो पाया। अप्रैल 2020 में जब केंद्र सरकार का दल इंदौर आया था, तब यहां की स्वास्थ्य सुविधाओं में बढ़ोतरी की योजना बनाने के लिए कहा गया था। मध्य प्रदेश सरकार ने इसके लिए बेड, आक्सीजन की आपूर्ति, वेंटीलेंटर और आइसीयू बढ़ाने की योजना बनाई थी। इसमें से आधा काम ही हो पाया है। कोरोना के नमूनों की जांच के लिए सरकारी प्रयोगशालाओं की क्षमता भी जहां की तहां है। इतने समय में केवल सुपर स्पेशलिटी अस्पताल शुरू हो पाया है।

संक्रमितों की संख्या तीन गुना लेकिन इंतजामों से पीछे खींच लिए कदम

- एक साल पहले के हालात देखें तो इंदौर में हर दिन जांच में कोरोना संक्रमितों की संख्या औसत 250-300 आती थी। अब तो हर दिन 800-900 पाजिटिव आ रहे हैं। इनमें से कई गंभीर मरीजों को ऑक्सीजन की जरूरत पड़ रही है, लेकिन आक्सीजन की सप्लाई जितनी पहले थी, अब भी उतनी ही है।

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- एक साल पहले जब किसी कालोनी की किसी गली में एक व्यक्ति भी पाजिटिव आता था तो पूरी गली बंद हो जाती थी। साथ ही परिवार के सभी सदस्यों और संपर्क में रहने वाले पड़ोसियों की भी सैंपलिंग और जांच की जाती थी। अब तो केवल पाजिटिव आए व्यक्ति को घर में आइसोलेट कर दिया जाता है और घर के बाकी लोग बाहर घूम रहे हैं।

- पहले आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और आशा हर वार्ड और हर घर का सर्वे करके कोरोना संक्रमितों की पहचान करती थीं। इसके बाद स्वास्थ्य विभाग की टीम और आरआरटी सैंपल लेकर गंभीर मरीजों को अस्पताल पहुंचाती थी। अब ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है।

- जरूरत के हिसाब से होटल और गार्डनों को अस्पतालों और कोविड केयर सेंटर के रूप में तब्दील किया गया था। अब गंभीर मरीज भी अस्पताल, बेड और आइसीयू के लिए मारे-मारे फिर रहे हैं।

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